पुण्यश्लोका लोकमाता अहल्यादेवी होलकर-6:-
पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- राजनैतिक प्रबंधन-1:-
- मालवा की यह रानी एक प्रभावशाली शासक होने के साथ साथ कुशल राजनीतिज्ञ भी थी। *सन् 1772 में उन्होंने पत्र लिख कर पेशवा को सावधान किया 'अंग्रेजों का प्रेम उस भालू के समान है जो गुदगुदी कर करके ही प्राण निकाल लेता है।' इस प्रकार यह समझा जा सकता है कि अहिल्याबाई का कूटनीतिक व राजनीतिक चिंतन उच्च कोटि का था।
- अहिल्याबाई होल्कर ने अपने निकट स्थित किसी भी राज्य पर कभी हमला नहीं किया... लेकिन यदि किसी ने उनकी और आंख उठाकर देखा तो वे उसका मुंहतोड़ जबाब देने की हिम्मत भी रखती थी।
- उनका विश्वास अनावश्यक युद्ध में कभी नहीं रहा लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं था कि वे एक भीरू शासिका थीं। "उनका कहना था कि 'समस्त भारत की जनता एक है। भारत हमारा एक बड़ा राष्ट्र है। छोटे-बड़े राज्यों का भेद विष के समान है। यह भेद का विष एक दिन हम सबको नरक में धकेलेगा।"
पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- राजनैतिक प्रबंधन-2:-
- अहिल्याबाई के एकमात्र पुत्र मालेराव की मृत्यु के बाद राज्य का कोई उत्तराधिकारी भी नहीं था। उनके दीवान गंगाधर ने माधवराव पेशवा के काका जिन्हें राधोबा दादा के नाम से जाना जाता था, को होलकर राज्य मालवा पर कब्जा करने के लिये उकसाया। यह समाचार पाकर कि राधोबा दादा अपने पचास हजार सैनिकों के साथ पूना से इन्दौर की और मालवा विजय हेतु चल पड़े हैं, माता अहिल्या ने वीरांगना का रूप धारण कर लिया। आसपास के राज्यों से उन्होंने समर्थन व सेना भी जुटा ली।
- इसके बाद अहिल्याबाई ने अपनी बुद्धि कौशल का प्रयोग करते हुए राधोबा दादा पेशवा को यह समाचार भेजा कि- 'यदि वह स्त्री सेना से जीत अर्जित भी कर लेंगे, तो उनकी कीर्ति और यश में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होगी, दुनिया यही कहेगी कि स्त्रियों की सेना से ही तो जीते हैं। और कदाचित अगर आप स्त्रियों की सेना से हार गये, तो कितनी जग हंसाई होगी आप इसका अनुमान भी नहीं लगा सकते।'
- महारानी अहिल्या बाई की यह बुद्धिमत्ता काम कर गई। राघोबा दादा ने मालवा पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया।
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