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Ahilya Bai Holkar story part-10

 पुण्यश्लोका लोकमाता अहल्यादेवी होलकर:-

Ahilya Bai Holkar story part-10


पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- तीर्थस्थलों का विकास - उनकी राष्ट्रीय दृष्टि-1:-

  • केवल महेश्वर क्षेत्र में ही उन्होंने 28 घाट और 50 मंदिर बनवाए थे। 
  • अहिल्या माता की दृष्टि केवल मालवा राज्य तक ही सीमित नहीं थी, वस्तुतः वह पूरे राष्ट्र को सनातन संस्कृति में गूंथा हुआ ही देखती थीं। उनका दृष्टिकोण अखिल भारतीय था।
  • वे मानती थीं कि भारत की एकात्मता में तीर्थ यात्राओं का बड़ा महत्व है। ये तीर्थ यात्राऐं न केवल आध्यात्मिक सुख शांति देती हैं अपितु विविध क्षेत्र, पंथ, भाषा, मान्यताओं वाले इस विराट भारत के जन-जन को एकात्मता के सूत्र में बांधती हैं।
  • उन्हें यह भलीभाँति एहसास था कि युगों युगों से चली आ रही तीर्थ यात्राओं की यह पावन परंपरा विदेशी विधर्मी सत्ताओं के कारण टूट गयीं हैं।
  • इन स्थानों के मार्ग, मंदिर, अन्नक्षेत्र, पेयजल व्यवस्था, धर्मशालाएँ इस्लामिक आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दी हैं। इनके पुनर्निर्माण किये बिना तीर्थ यात्राएँ सुगम नहीं होंगी। इसीलिए पूरे भारत में उन्होंने एक दृष्टी से अनेकों महत्वपूर्ण निर्माण कार्य करवाए।
        

पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- तीर्थस्थलों का विकास - उनकी राष्ट्रीय दृष्टि-2:-

  • वाराणसी में मणिकर्णिका घाट, अहिल्या माता के द्वारा ही बनवाया गया था।
  •  बद्रीनाथ से रामेश्वरम और द्वारिका से काशी तक उन्होंने अनेकों घाट, धर्मशालाएं, मंदिर इत्यादि बनवाए।
  • काशी से कोलकाता तक सड़क को पक्का करवाया। कई भन्न मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया।
  • देवी अहिल्या ने राजनीतिक और भौगोलिक सीमाओं को लांघकर भी पूर्ण शांति और सहमति के साथ अनेकों निर्माण कार्य करवाए। अहिल्या माता का प्रभाव इतना अधिक था कि, उन्होंने टीपू सुल्तान के राज्य में भी मंदिरों का निर्माण करवा दिया था।
  • भारत में लगभग 80 से 100 ऐसे ज्ञात स्थान है जहां पर अहिल्या माता ने भवनों का निर्माण करवाया।

पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- तीर्थस्थलों का विकास- राष्ट्रीय दृष्टि-3:-

  • देवी अहिल्याबाई का यह महती कार्य, भारत को जोड़ने का कार्य था। यह भारतीय समाज को एकात्मता के सूत्र में गूंथने का कार्य था। अहिल्या माता ने न केवल स्थापत्यों का निर्माण करवाया बल्कि वहां भविष्य में भी सुचारू रूप कार्य चलता रहे, उसकी भी अग्रिम व्यवस्था कर दी।
  • वे अंग्रेजों के मनोभावों को बहुत अच्छे से समझती थीं। अहिल्या माता द्वारा किए गए यह कार्य अंग्रेजों के षडयंत्रों के विरुद्ध, हिंदू एकत्रीकरण का प्रयास भी थे। फिर भी वे रुकी नहीं, अपितु जीवन के अंतिम क्षण तक सतत् इस कार्य में लगी रहीं।
  • लोकमाता अहिल्या की दृष्टि में, सभी पंथ संप्रदाय एक समान थे। इसलिए उन्होंने सम्यक दृष्टि से शैव, शाक्त, वैष्णव आदि सभी स्थानों का निर्माण करवाया। उन्होंने महान संतों के स्थान पर भी निर्माण कार्य करवाए। वह जानती थी कि मंदिर, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र होते हैं। इसलिए अहिल्या माता के इन प्रयासों से समाज में बड़े परिवर्तनों को गति मिली।

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