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Ahilya Bai Holkar story part-11
पुण्यश्लोका लोकमाता अहल्यादेवी होलकर:-
पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- निर्माण हो या दान-पुण्य 'खासगी' (निजि) धन से-1:-
- व्यसन में डूबे और गलत राह पर जाते हुए अपने पति से अहिल्यादेवी निराश नहीं हुई, बल्कि उन्होंने अपने पति को सही राह पर लाने ले जाने का प्रयास किया। वे बहुत हद तक इसमें वह सफल भी हुई।
- जब देवी अहिल्या ने अपने पति को भी उनके अनर्गल खर्च के लिए, राजकोष से धन देने के लिए मना कर दिया, तो गुस्से में पति खंडेराव जी ने राजकीय बहीखातों को फेंक दिया था। यह देखकर अहिल्या देवी ने अपने पति पर ही जुर्माना लगा दिया। हालांकि बाद में पत्नीधर्म निभाते हुए उन्होंने उनसे क्षमा भी मांगी और अपने खासगी (निजी) धन से ही 25 मुद्राओं का जुर्माना भरा था।
- देवी अहिल्याबाई की सास गौतमाबाई को उनके भाई से जागीर प्राप्त हुई थी। बाजीराव पेशवा ने भी गौतमाबाई को एक बड़ी राशि दिनांक 20 जनवरी 1734 को दी थी। उन दिनों धनगर समाज में पति की कमाई का एक चौथाई हिस्सा पत्नी को दिया जाता था। अतः यह राशि भी गौतमाबाई को मिली। इस संपूर्ण राशि को मिला करके एक खासगीकोष अर्थात विशेष कोष बना। अहिल्याबाई इसी खासगीकोष से अपने व्यक्तिगत खर्च किया करती थी।
- अहिल्या देवी के शासनकाल में संपन्नता का स्तर इतना उठा की इंदौर रियासत, पुणे के पेशवा को भी ऋण दिया करती थी।
पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- निर्माण हो या दान-पुण्य 'खासगी' (निजि) धन से-2:-
- युद्ध से लौटने के बाद मल्हारराव जी राज्य की संपूर्ण व्यवस्थाओं का एक बार निरीक्षण करते थे।
- राजकोष और लेनदेन का निरीक्षण करते हुए, जब उन्होंने किसानों के बहीखातों को देखा, तो देखकर कुछ देर ठिठके और फिर आगे का निरीक्षण करने लगे। अहिल्यामाता ने मल्हारराव जी की उस दो पल के हावभाव को पकड़ लिया और मल्हारराव जी कुछ कहे उसके पहले स्वयं देवी अहिल्या ने उन्हें बताया, कि इस वर्ष ओले गिरे हैं और अतिवृष्टि हुई है, इसीलिए किसानों के लिए अधिक खर्च किया गया है।
- देवी अहिल्या के सामने जो दायित्व आए, उन्होंने उन सभी का निर्वहन किया। मल्हारराव होलकर, बाजीराव पेशवा के घनिष्ठ मित्र थे और अहिल्या माता उन्हें अपने भाई के समान मानती थी।
- जब बाजीराव पेशवा का बलिदान हुआ, तो उनके अंतिम संस्कार का संपूर्ण खर्च, उन्होंने अपने व्यक्तिगत कोष, खासगी ट्रस्ट से किया था।
- सम्पूर्ण देश के 100 से अधिक तीर्थस्थलों पर देवस्थान, बावड़ी, अन्नक्षेत्र आदि के निर्माण का सारा व्यय देवी अहिल्याबाई ने अपने इसी खासगी निधि से ही किया। राजकोष से एक पाई भी नहीं ली।
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