Ahilya Bai Holkar story part-12

पुण्यश्लोका लोकमाता अहल्यादेवी होलकर:-

Ahilya Bai Holkar story part in hindi

पुण्यश्लोका लोकमाता अहिल्यादेवी होलकर- देवी के प्रशासन के कुछ विशेष तथ्य:-

1. देवी अहल्याबाई की न्याय व्यवस्था धनप्राप्ति के लिये नहीं थी।

2. धारणाशक्ति एवं समझदारी अद्वितीय होने के कारण किसी भी बात का मर्म सहजता से ग्रहण करके सही व त्वरित निर्णय देने की उनकी क्षमता थी। उनके आदेश मार्मिक होते थे।

3. दिल्ली बादशाह का एक पत्र लेकर एक सेवक आया। उसने कहा कि पत्र बादशाह का है और स्वागत के लिये दो कदम आगे बढ़कर पत्र लेना चाहिये। तब देवी अहल्याबाई ने निर्भयता से कहा कि "श्रीमंत पेशवा ने बादशाह को जागीर दी है इस कारण उसके पत्र का इतना सम्मान करने की कोई आवश्यकता नहीं है।" कितना साहस एवं स्वाभिमान था अहल्याबाई में!

4. धर्मपरायणता व परधर्म सहिष्णुता जहाँ होती है वहाँ कूटनीति निपुणता नहीं होती। जहाँ कूटनीति कुशलता व कल्पकता होती है वहाँ धार्मिक वृत्ति, कर्तव्यभावना नहीं दिखाई देती है। धैर्य व पराक्रम के साथ विनम्रता नहीं होती। शक्ति व वैभव जहाँ है वहाँ चारित्र्य एवं सात्विकता का दर्शन नहीं होता है। परन्तु ये सभी व्यावहारिक सत्य देवी अहल्याबाई में साकार हुए थे।

5. सारासार विवेक, प्रचंड स्मरण शक्ति, निष्कपटता, निष्कामवृत्ति व ईश्वर पर असीम श्रद्धा का सुन्दर संगम अर्थात् देवी अहल्याबाई। मनुष्य जन्म से नहीं तो सत्कार्य एवं सद्व्यवहार से महान् होता है।

6. अपराधी, दोषी व्यक्तियों के प्रति देवी का रवैय्या बड़ा कठोर था। उनको बन्दी बनाकर कठोर दण्ड भी देती थी। परन्तु दूसरी ओर उनके परिवारजनों के प्रति बहुत दयालु रहती थी। उनके एक पत्र में उल्लेख मिलता है कि हर कैदी के बच्चे और पत्नी को प्रतिदिन प्रति व्यक्ति एक सेर जवार दिया जाने का आदेश था। कैदियों के प्रति सहृदयता का व्यवहार कर उनकी अपराधी प्रवृत्ति कम करने का उनका प्रयोग था।

देवी अहल्याबाई ने 18वीं सदी में जो विचार किया था, उसका प्रयोग अभी सुप्रसिद्ध कारागृह अधीक्षिका श्रीमती किरण बेदी ने यशस्विता से किया है। एक व्यक्ति बन्दी बनाया जाता है तो परिवार के अन्य लोगों की भी प्रवृत्ति अपराधी बन सकती है। 

जीवन का अपराधीकरण अधिक होता जाना सामाजिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। इसका विचार आज एक स्त्री ही कर सकती है।

7. देवी अहल्याबाई की न्याय व्यवस्था विकेंद्रित थी। पंचायत का निर्णय सामान्यतः अन्तिम था। जब तक ऊपर के अधिकारी तक कोई शिकायत नहीं की जाती, देवी अहल्याबाई पंचायत न्यायालय के निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करती थीं।

8. राजा राज्य का स्वामी नहीं, विश्वस्त है इस भावना से प्रजा के सर्वाधिक कमजोर घटक पर भी अन्याय न हो इसकी चिंता वह करती थी। राजा मात्र होकर भी प्रजातंत्र का एक आदर्श उन्होंने प्रस्तुत किया।

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