शिक्षक का व्यवहार कैसा होना चाहिए:-
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-1:-
एक विद्यार्थी अपने शिक्षक से ज्ञान प्राप्त कर जीवन में अग्रसर होता है, अपने जीवन का निर्माण करता है। जो विद्यार्थी अच्छे गुणों को ग्रहण कर शिष्टाचारी बनकर जीवन- पथ पर आगे बढ़ता है; जीवन में उच्च पद, सम्मान आदि प्राप्त करता है और उसको समाज में एक आदर्श व्यक्तित्व का दर्जा प्राप्त होता है।
दूसरी ओर वह शिष्य है, जो अशिष्ट है। वह इस दुनियां में आता है और चला जाता है। उसका जीवन कीड़े-मकोड़े की तरह होता है- अर्थात् उनका कोई अस्तित्व नहीं होता। वह निरुद्देश्य जीवन जीते मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
जहाँ एक ओर विद्यार्थियों को अपने गुरुजनों, शिक्षकों के साथ सम्मानजनक उचित व्यवहार करना चाहिए, वहीं दूसरी ओर शिक्षकों को भी अपने शिष्यों, विद्यार्थियों के सम्मान का उचित ध्यान रखना चाहिए, अर्थात् दोनों का एक-दूसरे के प्रति शिष्टाचार आवश्यक है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-2:-
विद्यार्थी को अपना कार्य स्वयं करना चाहिए, न कि अपने माता-पिता अथवा अभिभावक पर निर्भर होना चाहिए। जो विद्यार्थी अपना कार्य स्वयं करते हैं वे जीवन में कभी दूसरों पर निर्भर नहीं रहते। अपना कार्य स्वयं करने वाला विद्यार्थी आत्मनिर्भर बनता है; जबकि वह विद्यार्थी जो अपना कार्य स्वयं नहीं करता, वह दूसरों पर निर्भर रहता है। वह चाहे कक्षा में हों अथवा अन्य कहीं, इसी अवसर की तलाश में रहता है कि कब कोई ऐसा मिले जिससे अपना गृहकार्य अथवा अन्य कोई कार्य करवाए। यह अवगुण विद्यार्थी को भटकाता है और अनुचित मार्ग की ओर अग्रसर भी करता है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-3:-
विद्यार्थियों को कम बोलनेवाला एवं अधिक सुननेवाला होना चाहिए। कम बोलने से तात्पर्य है कि केवल उचित अवसर पर ही बोलना चाहिए, अनुचित अवसर पर बोलनेवाला विद्यार्थी हँसी का पात्र बनता है। अधिक बोलनेवाला विद्यार्थी दूसरों की बातों को ध्यान से नहीं सुनता और अपनी ही बातों को ऊपर रखता है, जबकि कम बोलनेवाला और अधिक सुननेवाला विद्यार्थी दूसरों की अच्छी बातों को सुनता है। विद्यार्थी को दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
यदि विद्यार्थी में ये गुण हैं तो वह सबसे विशिष्ट अलग ही दिखाई देता है। विद्यार्थी में यह शिष्टाचार होना अत्यावश्यक है। जब यह शिष्टाचार होगा, तभी वह दूसरों का सम्मान भी करेगा।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-4:-
भारत में गुरु-शिष्य परंपरा कोई नई बात नहीं है। यह हमारे देश की आदर्श परंपरा रही है। यह विश्व को हमारी अनमोल देन है।
प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि वन में आश्रम बनाकर रहते थे। शिष्य भी उनके साथ रहकर उनकी सेवा करते थे, साथ ही शिक्षा भी ग्रहण करते थे। सभी शिष्यों का यह परम कर्तव्य था कि वे अपने गुरुजन का पूर्ण ध्यान रखें, गुरुजन के कार्यों का ध्यान रखें, आश्रम की देखभाल करें आदि-आदि।
समयानुसार इन सभी में परिवर्तन आता गया। गुरुकुल आश्रम नहीं रहे, शिक्षा देने के लिए विद्यालय बने, शिक्षा देनेवाले भी बदले। गुरु-शिष्य परंपरा नवीन रूप में सामने आई। इसके मायने भी बदले। शिष्यों के गुरुजन के प्रति शिष्टाचार के मायने भी बदले। लेकिन शिष्टाचार शिष्टाचार ही है, वह न तो बदलना चाहिए और न ही बदलेगा; क्योंकि गुरु अथवा शिक्षक का स्थान वही रहेगा, जो सदियों से चला आ रहा है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-5:-
विद्यार्थियों का गुरुजनों के प्रति शिष्टाचार इस प्रकार होना चाहिए-
▪︎ विद्यार्थियों को अपने गुरुजनों का पूर्ण आदर करना चाहिए। उनके आदेश का पालन करना चाहिए।
▪︎ कक्षा में गुरुजनों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। इधर-उधर की बातें करके स्वयं का और अन्य विद्यार्थियों का ध्यान नहीं भटकाना चाहिए।
▪︎ गुरुजन के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास चाहिए। विकल्प रहित समर्पण का भाव भी चाहिए। तभी शिष्य समुचित रुप से शिक्षा ग्रहण कर श्रेष्ठ संस्कारित जीवन की ओर अग्रसर हो सकता है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-6:-
▪︎ कक्षा-कार्य समय पर पूरा करना चाहिए।
▪︎ विद्यार्थियों को स्कूल के समस्त शिक्षकों का समान रूप से आदर करना चाहिए।
▪︎ शिक्षक का कभी मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।
▪︎ सहपाठियों के साथ मिलकर भी शिक्षकों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।
▪︎ शिक्षकों से विनम्रता से बात करनी चाहिए।
▪︎ विद्यार्थी को यदि कुछ समझ में न आए उसका समाधान शिक्षकों से करवा लेना चाहिए।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-7:-
आजकल यह देखा-सुना जाता है कि विद्यार्थी दंड पाने पर शिक्षकों से बदला लेने की भावना से ग्रस्त हो जाते हैं; जबकि ऐसा करना सर्वथा अनुचित है। यह शिष्टाचार नहीं है। विद्यार्थियों को ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए।
यदि शिक्षक अपने कर्तव्य को भूलकर कोई गलत कार्य कर रहा है तो उसके उस गलत कार्य अथवा व्यवहार की शिकायत विद्यालय के प्रधानाचार्य आदि से करनी चाहिए, ताकि उचित कार्यवाही हो सके। परंतु विद्यार्थी द्वारा शिक्षक को अपशब्द आदि कहना अथवा कोई अन्य अवांछित कार्य करना शिष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता।
विद्यार्थी को ऐसा अशिष्ट नहीं बनना चाहिए। इससे उसके मन में बदले की भावना जन्म लेती है। यह भावना उसके मन पर गलत प्रभाव डालकर उसके भावी जीवन के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है। इस प्रकार का कार्य करने से विद्यार्थी हिंसक प्रवृत्ति का बन सकता है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-8:-
आजकल भी देखा-सुना जाता है कि विद्यार्थियों ने बदला लेने की भावना से शिक्षक के साथ मार-पीट अथवा अभद्र व्यवहार किया। क्या यह शिष्टाचार है? यह माना कि आज कुछ शिक्षक पक्षपात की भावना से विद्यार्थियों को प्रताड़ित भी करते हैं, लेकिन फिर भी विद्यार्थियों को अपने शिष्टाचार के अनुरूप ही कार्य करना चाहिए। ऐसे शिक्षक के किसी गलत कार्य की शिकायत ऊपर करनी चाहिए, न कि स्वयं निर्णय लेकर झगड़ा-फसाद करना चाहिए।
शिक्षकों का आदर अपने देश की परंपरानुसार ही करना चाहिए। ऐसे विद्यार्थी दूसरे के लिए प्रेरणास्रोत होते हैं। शिक्षकों का आदर-सत्कार करने से विद्यार्थियों का मान बढ़ता है। अतः शिक्षकों का सम्मान करने में कभी शर्म नहीं करनी चाहिए।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-9:-
सहपाठियों के प्रति शिष्टाचार-
सहपाठियों से लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए। कक्षा में छोटी-छोटी बातों को लेकर मनमुटाव नहीं करना चाहिए, अन्यथा ऐसा कार्य विद्यार्थी के मन में गलत भावना पैदा कर उन्हें अशिष्ट बना सकता है।
सहपाठियों की वस्तुओं को उनसे पूछे बिना नहीं लेना चाहिए। यह व्यवहार विद्यार्थियों को चोरी जैसे घिनौने कार्य की ओर प्रेरित कर सकता है। अपने सहपाठियों की हरसम्भव सहायता करनी चाहिए।
सहपाठियों को अपने शिक्षकों के प्रति मजाक हेतु कभी उकसाना नहीं चाहिए।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-10:-
विद्यालय के प्रति शिष्टाचार-
जिस प्रकार विद्यार्थी स्वयं की वस्तुओं की देखभाल करते हैं, उसी प्रकार उन्हें अपने विद्यालय से संबंधित प्रत्येक वस्तु का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यह शिष्टाचार का विशेष गुण है।
• विद्यार्थियों को अपने विद्यालय की गरिमा को बनाए रखना चाहिए, क्योंकि उनके व्यवहार से ही उस विद्यालय की छवि अच्छी बनती है, जहाँ वे अध्ययन करते हैं।
• विद्यालय की संपत्ति को हानि नहीं पहुँचना चाहिए, क्योंकि यह उनके ही उपयोग के लिए होती है। इसलिए उसका ध्यान रखना शिष्टाचार की श्रेणी में आता है।
• अपनी कक्षा की दीवारों अथवा विद्यालय की अन्य दीवारों पर कुछ लिखकर उन्हें खराब नहीं करना चाहिए। उन्हें तोड़ना-फोड़ना नहीं चाहिए। विद्यालय परिसर को साफ सुथरा रखना चाहिए।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-11:-
विद्यालय के प्रति शिष्टाचार-
• विद्यार्थियों को अपने विद्यालय में पानी का उचित ख़्याल रखना चाहिए। पानी का उपयोग करने के पश्चात् नल खुला नहीं छोड़ना चाहिए अथवा कहीं नल चालू हो तो सब काम छोड़कर उसे बन्द करना चाहिए। पानी मानव जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, मूल्यवान् है, इसलिए जहाँ तक हो सके, इसका उचित उपयोग किया जाना शिष्टाचार की निशानी है।
• मन लगाकर रुचिपूर्वक अध्ययन करना चाहिए, कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहना चाहिए। क्योंकि इससे विद्यालय के मान-सम्मान में वृद्धि होती है।
• विद्यालय की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कक्षा में कूड़ा-करकट नहीं फैलाना चाहिए। कूड़े को उचित स्थान पर फेंकना चाहिए। कूड़ा-करकट फैलाने से जहाँ एक ओर गंदगी फैलती है, वहीं परिवेश खराब होता है और रोगों को भी बढ़ावा मिलता है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-12:-
विद्यालय के प्रति शिष्टाचार-
• विद्यार्थी जब अपने विद्यालय की ओर से किसी अन्य विद्यालय में खेल के लिए अथवा किसी अन्य सांस्कृतिक कार्य के लिए जाएँ तो वहाँ उन्हें अनुशासित शिष्टाचार अपनाना चाहिए। उनका यह व्यवहार विद्यालय के सम्मान के लिए अत्यंत आवश्यक है।
• अपने विद्यालय की प्रत्येक वस्तु को सुरक्षित रखना चाहिए।
ये सभी शिष्टाचार जिम्मेदारी की भावना को प्रकट करने का माध्यम तो हैं ही, साथ ही ये विद्यार्थी को सम्मान भी दिलाते हैं।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-13:-
शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति शिष्टाचार-
जिस प्रकार से विद्यार्थियों का अपने गुरुओं-शिक्षकों के प्रति शिष्टाचार का कर्तव्य है, उसी प्रकार शिक्षकों का भी अपने विद्यार्थियों के प्रति कर्तव्य है। शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों- शिष्यों का ध्यान उसी प्रकार से रखना चाहिए जिस प्रकार वे अपने बच्चों का रखते हैं।
हमारे देश में सदियों से जो परंपरा रही है उसमें राजा-महाराजा आदि के पुत्र आश्रम में ऋषि-मुनियों के साथ रहते थे। आश्रम में ही वे सभी कार्य करते थे और जब तक शिक्षा में निष्णात् नहीं हो जाते थे तब तक वहीं गुरु के साथ रहते थे।
राजा-महाराजा आदि अपने बाल पुत्रों को ऋषि- मुनियों के आश्रम में क्यों भेज देते थे? क्या उनके यहाँ कुछ कमी थी? नहीं, वे उन्हें इसलिए भेजते थे, क्योंकि वे जानते थे कि गुरु का स्थान माता-पिता से ऊँचा होता है और जिस गुरु के पास वे अपने पुत्रों को शिक्षा के लिए भेज रहे हैं, वे उनसे अधिक उन्हें शिक्षित कर सकते हैं। आज स्थितियाँ अलग हैं- आश्रम नहीं हैं, छात्रावास आदि हैं; लेकिन क्या वहाँ उचित शिक्षा मिल पाती है? यह विचारणीय यक्ष प्रश्न है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-14:-
शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति शिष्टाचार-
शिक्षकों को आज भी उसी परंपरा का निर्वाह करना चाहिए, जो सदियों से हमारे देश की गरिमा रही और इसीलिए गुरु का स्थान माता- पिता एवं ईश्वर से भी ऊँचा रखा गया है।
अतः शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों के प्रति इस प्रकार का शिष्टाचार अपनाना चाहिए-
• शिक्षकों को अपने सभी विद्यार्थियों का पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए। जो पढ़ाई में कमजोर हों, उन विद्यार्थियों के शिक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
• शिक्षकों को पक्षपात की भावना से दूर रहना चाहिए। सभी विद्यार्थियों को एक समान समझना चाहिए।
• किसी विद्यार्थी द्वारा अधिक सम्मान किए जाने पर यह नहीं समझना चाहिए कि वह उनकी चापलूसी कर रहा है। ऐसे विद्यार्थियों को और प्रोत्साहन देकर आगे बढ़ाना चाहिए, क्योंकि ऐसे विद्यार्थी दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत होते हैं।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-15:-
शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति शिष्टाचार-
• विद्यार्थियों को उचित तरीके से समझाना चाहिए और बार-बार पूछे जाने पर भी उन्हें बार-बार समझाना चाहिए। ऐसे में कभी धैर्य न खोने पाए।
• शिक्षकों को कक्षा में विद्यार्थियों को स्व अनुशासन में रहने का पाठ निरंतर पढ़ाते रहना चाहिए। उनके समक्ष अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने से वे स्वप्रेरणा से अनुशासन का पालन करेंगे।
• विद्यार्थियों का गृह-कार्य प्रतिदिन देखना चाहिए। इससे विद्यार्थियों की जिम्मेदारी की भावना का ज्ञान होता है कि वे अपना कार्य ईमानदारी से, जिम्मेदारी से करते हैं अथवा नहीं।
• विद्यार्थियों को कभी प्रताड़ित करना या मारना-पीटना नहीं चाहिए। सिखाने में स्नेह प्रेम ही पर्याप्त होता है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-16:-
शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति शिष्टाचार-
• विद्यार्थियों के साथ मित्र, माता-पिता, गुरु आदि के समान व्यवहार करना चाहिए- अर्थात् विद्यार्थियों से घुल-मिलकर शिक्षा देनी चाहिए, ताकि वे आसानी से और शिक्षा ग्रहण करें, लेकिन अनुशासन का पाठ भी सतत् देते रहना आवश्यक है। कहीं ऐसा न हो कि विद्यार्थी इतने सिर पर चढ़ जाएँ और शिक्षक को शिक्षक ही न समझें।
• विद्यार्थी को दंडित किए जाने के पश्चात् प्यार से समझाकर उसे उसकी गलती का एहसास करा देना चाहिए, ताकि विद्यार्थी के मन में कोई भ्रम न रहे। कभी-कभी ऐसे विद्यार्थी दंडित होने पर शिक्षक के प्रति बदले की भावना से भर सकते हैं। यह भावना आगे जाकर विद्यार्थी एवं शिक्षक दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-17:-
शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति शिष्टाचार-
• अध्ययन के दौरान समय-समय पर विद्यार्थियों को महापुरुषों तथा अपने गौरवशाली इतिहास आदि के विषय में बताते रहना चाहिए, ताकि विद्यार्थियों में उनके जैसा बनने की भावना प्रबल हो और उन्हें प्रेरणा मिले।
• शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे उदंड विद्यार्थियों के बारे में उनके माता-पिता को सूचित करें। समय-समय पर उनके अभिभावक से सम्पर्क, संवाद अवश्य करना चाहिए।
• किसी विद्यार्थी को सामूहिक रूप से अपमानित नहीं करना चाहिए। इस कार्य से विद्यार्थी में कुंठा, हीन-भावना या प्रतिशोध की भावना उत्पन्न हो सकती है।
• विद्यार्थियों को भारतीय खेल, वाद-विवाद प्रतियोगिता आदि के लिए प्रोत्साहित करते रहना चाहिए, ताकि उनके आत्मविश्वास में निरन्तर वृद्धि होती रहे।
शिष्य एवं शिक्षक के बीच शिष्टाचार-18:-
शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति शिष्टाचार-
• शिक्षकों को उन विद्यार्थियों का उत्साह बढ़ाना चाहिए, जो किसी कारण से परीक्षा में असफल हो गए हों अथवा जिन्होंने कम अंक प्राप्त किए हों, ताकि उनके आत्मविश्वास में कमी न आए और वे पुनः नई स्फूर्ति के साथ परीक्षा की तैयारी में जुट जाएँ। उत्साहवर्धन विद्यार्थियों में एक बलवर्धक औषधि की भाँति कार्य करता है।
• जहाँ तक हो सके, विद्यार्थियों को अपने देश की परंपरा, उसकी संस्कृति तथा जीवन मुल्यों आदि के विषय में जानकारी देते रहना चाहिए।
शिक्षकों का इस प्रकार का शिष्टाचार न केवल विद्यार्थियों के लिए लाभदायक होता है, अपितु वह विद्यालय की गरिमा के लिए भी लाभदायक है।
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