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various phases of system development in hindi । sdlc in hindi

 System development life cycle in hindi ( sdlc in hindi):-

सिस्टम् डवलपमेन्ट लाइफ साइकिल ( sdIc ) एक ट्रेडिश्नल डवलपमेन्ट मेथड है । जो आजकल अधिकतर सगंठन द्वारा प्रयोग किया जाता है । एक स्ट्रक्चर डवलपमेन्ट है । जो सिक्वेन्शियल प्रोसेस की बनी हुई होती है । जिनके द्वारा इंफॉरमेशन सिस्टम को डवलप किया जाता है । इसके अन्तर्गत कई घटक आते है । जैसे - सिस्टम स्टडी , फिजिबिलीटी स्टडी , सिस्टम ऐनालिसिस , सिस्टम डिजाइनिंग आदि । इसमे से कुछ घटक या टास्क सभी प्रोजेक्ट उपस्थित होते है । जबकि कुछ कार्य किसी विशेष प्रकार के प्रोजेक्ट में उपस्थित होते है । अर्थात् बड़े प्रोजेक्ट में सामान्यतया सभी घटको की आवश्यकता होती है । जबकि छोटे प्रोजेक्ट में केवल घटको को एक सबसेट की आवश्यकता होती है। जबकि टास्क का फ्लो सामान्यतः समान होते है । 
System development life cycle in hindi ( sdlc in hindi):-  सिस्टम् डवलपमेन्ट लाइफ साइकिल ( sdIc )


पहले डवलपर sdlc in hindi मे वॉटर फॉल एप्रोच का प्रयोग करते थे जिससे एक स्टेज में एक कार्य के पूरा हो जाने के बाद अगली स्टेज शुरू की जाती थी । परन्तु आजकल सिस्टम डवलपर जब भी आवश्यकता हो तो किसी भी स्टेज में आगे या पीछे जा सकते है । इसमे प्रोजेक्ट एक टीम के द्वारा डवलप किया जाता है । इस डवलपमेन्ट सिस्टम में सामान्यतः यूजर , सिस्टम एनालिस्ट , प्रोग्रामर तथा टेकनिकल स्पेशलिस्ट आते है ।

sdlc full form:- सिस्टम् डवलपमेन्ट लाइफ साइकिल (System development life cycle)

various phases of system development in hindi:- 


System development life cycle in hindi ( sdlc in hindi):-  सिस्टम् डवलपमेन्ट लाइफ साइकिल ( sdIc )

1. System study 
2. Feasibility study 
3. System analysis 
4. System designing 
5. Coding 
6. Testing 
7. Implementation 
8. Maintainence phase 

1.System study- 

सिस्टम डवलपमेन्ट लाइफ साइकिल का यह सबसे पहला फेज़ होता है । system study किसी भी बिजनेस प्रोब्लम की अन्डरस्टेडिग के साथ शुरू होती है । इसमे किसी भी समस्या को समझने के बाद उस समस्या को दूर करने के उपाय पर ध्यान देना चाहिए तथा उस प्रोजेक्ट की भविष्य में क्या उपयोगिता है उसका पता लगाना चाहिए । system study को दो घटक किया जाता है-
( 1 ) First phase में system या project के बारे में servay किया जाता है कि इस system या project का future में scope होगा या नहीं । 
( 2 ) Second phase में उस system या project की सारी Details ली जाती है तथा पूरी डेफ्थ ( depth ) तथा study की जाती है तथा यह पता लगाया जाता है कि user की आवश्यकता क्या - क्या है तथा वर्तमान में जो system है उससे क्या - क्या ( problem ) समस्याएं हैं ।

2.Feasibility study in hindi : - 

Feasibility study,  सिस्टम डवलपमेन्ट लाइफ साइकिल (sdlc)का दूसरा महत्वपूर्ण चरण है । इसका मुख्य कार्य यह है कि किसी भी प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए किस प्रकार के वातावरण की आवश्यकता होगी, उस प्रोजेक्ट को बनाने में काम आने वाले स्त्रोतो का पता लगाना है । feasibility study का मुख्य कार्य किसी भी समस्या को सुलझाना ही नही बल्कि सिस्टम के लिए उस लक्ष्य को प्राप्त करना है । जिससे उस सिस्टम का आगे अच्छा स्कोप हो सके । इसके लिए feasibility study को तीन भागो मे वर्गीकृत किया जाता है।

1. Technical feasibility study ( in hindi)

2 . Economical feasibility study 

3 . Behavioural feasibility study 

1. Technical feasibility study : -

इसके अन्तर्गत यह पता लगाया जाता है कि बिजनेस मे सिस्टम का विकास करने के लिए आवश्यक हार्डवेयरसाफ्टवेयर काम्पोनेन्ट को डवलप किया जा सकता है या नहीं । तथा यह भी पता लगाया जाता है कि बिजनेस के उद्देश्यो को प्राप्त करने के लिए यह प्रोजेक्ट उपयोगी है या नही ।

2. Economical feasibility study :-

इसमे दो बेसिक प्रश्नो को ध्यान में रखा जाता है :-
1. क्या प्रोजेक्ट की कोस्ट बेनिफिट से ज्यादा है या नहीं । 
2. क्या प्रोजेक्ट को जैसा शिड्यूल किया गया है । उसके अनुसार डवलप किया गया है या नही ।
• इसमे ब्रेक इवन एनालिसस , रिर्टन ऑन इनवेस्टमेन्ट तथा नेट प्रजेन्ट वेल्यू मेथर्ड का प्रयोग किया जाता है ।

3. Behavioural feasibility study :-

यह फिजिबिलीटी प्रोजेक्ट से रिलेटिड human issue को हेंडल करती है । फिजिबिलीटी मे नए सिस्टम के लिए कम्पनी की skills तथा training की आवश्यकताओ का पत्ता लगाया जाता है । फिजिबिलीटी स्टडी conduct करने के बाद यह निश्चय किया जाता है कि सिस्टम डवलपमेन्ट प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाना है या नही । यदि डवलपर को लगता है कि ऑर्गेनाइजेशन के लिए सिस्टम फिजिबल है तो वह सिस्टम ऐनालिसस फेज़ को शुरू करते है ।

3. System analysis : - 

यह sdlc in hindi का तीसरा घटक है । इसका मुख्य कार्य यह पता लगाना है कि बिजनेस मे कौन - कौन सी समस्याएँ आ रही है । इस स्टेज मे बिजनेस की समस्याओ को बताया जाता है । उनके कारणो का पता लगाया जाता है । उन समस्याओ को हल करने के जिए उचित समाधान निकाला जाता है । तथा इनफॉरमेशन की आवश्यकता को identify किया जाता है । जो कि soluation को satisfy करती है । बिजनेस की समस्याओ को समझने के लिए उसमे शामिल विभिन्न बिजनेस प्रक्रिया को समझना होता है किसी भी व्यवसाय की समस्या को दूर करने के लिए सगंठन के पास तीन मुख्य उपाय होते है जो निम्न है 
1. कुछ भी नही करो तथा पुराने सिस्टम का प्रयोग करो । 
2. पुराने सिस्टम को मॉडिफाय या इनहेन्स करो 
3. नया सिस्टम डवलप करो ।
System analysis स्टेज का मुख्य उद्देश्य पुराने सिस्टम के बारे मे सूचनाओ को इकट्ठा करना तथा यह पता लगाना कि तीनो उपायों में से कौन सा उपाय प्रयोग करना है । और नए सिस्टम के लिए जरूरतो का पता लगाना । इस स्टेज का एंड प्रोडक्ट रिक्वायरमेन्ट का सेट होता है । सूचनाओ की आवश्यकता यह बताती है कि यह सिस्टम के लिए कौनसी सूचना , कितनी सूचना , किस के लिए , कब तथा किस फॉरमेट मे आवश्यक है । सिस्टम एनालिसस मे सबसे मुश्किल काम किसी विशेष सूचना की आवश्यकता को पहचानना है । इसके लिए सिस्टम एनालिसस इस तकनीक के अन्तर्गत यूजर के साथ स्ट्रक्चर्ड , अनस्ट्रक्चर्ड , interview तथा डाइरेक्ट ऑबजरवेशन आते है ।

4.System designing : - 

सिस्टम एनालिसस यह डिस्क्राइब करता है कि यूजर की सूचनाओ की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सिस्टम को क्या करना चाहिए । जबकि सिस्टम डिजाइन यह बताता है कि हम उद्देश्य को कैसे पूरा करना है । सिस्टम डिजाइन , डिजाइन एक्टीविटी का बना होता है । जो कि गई फंक्शनल रिक्वायरमेन्ट को पूरा करती है । सिस्टम डिजाइन फेज़ टेकनिकल डिजाइन होती है जो निम्न को specify करती है ।
1.सिस्टम आउटपुट , इनपुट और यूजर इनटरफेस । 
2 हार्डवेयर , सॉफ्टवेयर , डेटाबेस , टेल - कम्यूनिकेशन । 
सिस्टम डिजाइन को दो भागो मे विभाजित किया गया है 1.Preliminary or General designed 
2. Structured or Detailed designed 

1. Preliminary or General designed : - 

preliminary या जनरल डिजाइन में नए सिस्टम के सारे लक्षणो का विस्तार से उल्लेख किया जाता है । लक्षणों की कीमत को निश्चित करने के लिए व लाभो को प्राप्त करने के लिए सारी क्रियाओ को अलग - अलग चरणो मे विभाजित किया जाता है । अगर प्रोजेक्ट teasibie ( व्यवहार कुशल ) है तो उसे डिटेल डिजाइन चरण पर मूव किया जाता है । 

2.Structured or Detailed designed : - 

इस चरण में सिस्टम डिजाइन का प्रारूप एक द्वन्द तक बन जाता है । स्ट्रक्चर डिजाइन कम्प्यूटर सिस्टम के लिए ब्लयू प्रिंट की तरह होता है । यह समान अवयवो व उनके बीच की इंटी रिलेशनशिप की सारी समस्याओं के समाधान का कार्य करता है ।

 इसमें डिजाइनिंग के लिए अलग - अलग टूल्स व टेकनिक्स काम में ली जाती है । यह टूल्स व टेकनिक्स निम्न प्रकार है 

1.flow chart 

2.data flow diagram 

3.data dictionary 

4.structure 

5.decision table 

6.decision tree

5. Coding : - 

सिस्टम को डिजाइन करने के बाद उसकी कोडिंग की जाती है । प्रोजेक्ट का जो स्ट्रक्चर डिजाइन किया गया है । उस प्रांजेक्ट में बने हर एक फॉर्म के एक - एक ऑबजेक्ट को एकजिक्यूट कराने के लिए उसके हर एक इवेन्ट पर कोडिंग की जाती है । किसी भी बड़े सिस्टम डवलपमेन्ट प्रोजेक्ट में से अधिक कम्प्यूटर प्रोग्रामर व से लाइन कम्प्यूटर कोड की आवश्यकता होती है । इस प्रकार के सभी बड़े प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए एक प्रोग्रामिंग टीम बनाई जाती है । इस टीम में सामान्यतः फंक्शनल एरिया के यूजर भी होते है । जो के प्रोग्रामर को बिजनेस की समस्याओ पर फॉकस करने में मदद करते है । किसी भी एप्लीकेशन को डवलप करते समय पहले एप्लीकेशन द्वारा क्या Output आएगा इस बात का ध्यान रखना चाहिए । इसके लिए किस प्रकार की सूचना आवश्यक है । तथा उसे किस फॉर्म मे दर्शाना है । इस बात की जानकारी होनी चाहिए । किसी भी एप्लीकेशन को सप्लाय किये जाने वाले इनपुट डेटा पर फोकस किया जाना चाहिए इसके लिए किस प्रकार का डेटा हमारे पास मौजूद है तथा उसे किन साधनो द्वारा तथा किस फॉर्म में प्राप्त किया जा सकता है । इस पर ध्यान देना चाहिए ।

6. Testing : -

 कोडिंग करने के बाद उस कोड को चेक करने के लिए उसकी टेस्टिंग की जाती है । और यह पता लगाया जाता है कि क्या यह कोड पूरी तरह से सही है । और प्रोजेक्ट को जिन उद्देश्यो की पूर्ति के हेतु बनाया गया हैं क्या यह उन सभी उदेश्यो को पूरा कर रहा है या नहीं । यदि टेस्टिंग के दौरान इस कोड मे किसी भी प्रकार की एरर या बग्स आती है तो उसे हटाया जाता है । सामान्यतः इस कोड मे दो प्रकार की एरर उत्पन्न हो सकती है । सिनटेक्स एरर या लॉजिकल एरर । सिनटेक्स एरर कोड को लिखते समय उत्पन्न होती है । तथा लॉजिकल एरर उस प्रोजेक्ट को एकजिक्यूट करते समय उत्पन्न होती है । कोड को चेक करने के लिए टेटिंग की जाती है वह दो प्रकार की होती है 
1.यूनिट टेस्ट 
2.सिस्टम टेस्ट

1. यूनिट टेस्ट : -

यूनिट टेस्ट मे बनाए गए प्रोजेक्ट के हर एक फॉर्म को एक के बाद एक रन किया जाता है । तथा उसक हर एक एलिमेन्ट , ऑब्जेक्ट व इवेन्ट को चेक किया जाता है ।

2. सिस्टम टेस्ट : - 

यूनिट टेस्टिंग पूरी होने है । इससे पता लगाया जाता है कि वह प्रोजेक्ट किस प्रकार के सिस्टम पर बाद सिस्टम टेस्टिंग की जाती कार्य करेगा । उस प्रोजेक्ट की क्या - क्या आवश्यकता है वह किस प्रकार के सिस्टम पर एकजिक्यूट हो सकता है । इस प्रकार के सभी टेस्टिंग सिस्टम टेस्ट में पूरे किए जाते है ।

7. Implementation : -

यह पुराने सिस्टम को नए सिस्टम मे कन्वर्ट करने का एक प्रोसेस है । इसके लिए वर्तमान सिस्टम के प्रयोग में नये या improved एप्लीकेशन के ऑपरेशन के लिए एक conversion प्रोसेस की आवश्यकता होती है । आर्गनाइजेशन में चार प्रकार की strategies प्रयोग की जाती है । कुछ मुख्य बिन्दु implementation मे प्रयोग किए जाते है 
1.पेकेज को किस प्रकार रन किया जाएगा । 
2.डेटा को किस प्रकार एन्टर किया जाएगा । 
3.डेटा को किस प्रकार प्रोसेस किया जाएगा । 
4.किसी भी रिपोर्ट को कैसे प्राप्त किया जाएगा । 
जब यूजर कम्प्यूटर सिस्टम के बारे में पूरी तरह से ट्रेन्ड हो जाते है। तो किसी बिजनेस में जो मेनुअल वर्क किया जाता है उस मेनुअल काम को कम्प्यूटराइज्ड काम मे बदल दिया जाता है । इसके लिए दो strategie काम ली जाती है जो निम्न प्रकार है 1.parallel run 
2. piot run

1.parllel run : - 

Parllel run के अन्तर्गत किसी भी सिस्टम मे कार्य को मेनुअल व कम्प्यूटराइज्ड दोनो तरीको को काम मे लिया जाता है । ये दोनो तरीके एक के बाद एक एकजिक्यूट किये जाते है । यह strategie बहुत ही मददगार होती है जैसे 
1. Parller run अन्तर्गत मेनवल काम से जो परिणाम निकलता है उसे कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम से निकले परिणाम से कम्पेयर किया जाता है । 
2. यदि कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम किसी भी स्टेज पर आते - आते यदि फेल हो जाता है तो उसका प्रभाव कार्य पर नही पड़ता है । क्योकि मेनुअल सिस्टम को काम लगातार चलता रहता है । इस कारण मेनुअल सिस्टम के कार्य को प्रयोग किया जा सकता है ।

2. piot run : - 

Pilot run मे न्यू सिस्टम मे कुछ पार्टस लगाये जाते है । नए सिस्टम मे कुछ पार्टस को पहले इन्सटॉल किया जाता है । और उसे कुछ समय के लिए एकजिक्यूट किया जाता है । और जब उससे प्राप्त परिणाम यदि प्रोजेक्ट की आवश्यकता को strategie करता है तो उस नए सिस्टम मे बाकी बचे अन्य पार्ट्स को इम्प्लीमेन्ट किया जाता है । इसके अन्तर्गत आने वाली एरर को आसानी से हटाया जा सकता है ।

8. Maintainence phase : -

यह sdlc का सबसे अंतिम चरण है । इसके अन्तर्गत प्रोजेक्ट की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कुछ improvement किए जाते है । Maintainence phase के अन्तर्गत कोई भी सिस्टम या प्रोजेक्ट किसी भी बिजनेस के ऑब्जेक्टिव को पूरा करने के लिए ठीक प्रकार से कार्य कर रहा है या नही । इन बातो का ध्यान रखा जाता है । इसके अन्तर्गत मुख्य कार्य किये जाते है 1. सिस्टम की पूरी capability को जानना । 
2.सिस्टम की additional redirement व  requirement of the changes को जानना ।
3. Performance की study करना।


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