रामप्यारी गुर्जर कौन थी :-
रामप्यारी गुर्जर-1:-
जिनके नेतृत्व में 40 हज़ार महिला सैनिकों ने तैमूर लंग को नाकों चने चबवा दिये थे।
रामप्यारी गुर्जर भारतीय इतिहास में एक अल्पज्ञात (अनजाना) नाम है, परंतु उनकी वीरता की कहानी अद्वितीय है। अन्य हजारों वीर और वीरांगनाओं की भांति वह भी न जाने किन कारणों से इतिहासकारों की उपेक्षा का शिकार रही हैं।
बीस वर्षीय रामप्यारी गुर्जर ने अपने साथ चालीस हज़ार अन्य महिला सैनिकों को लेकर सन् 1398 में मेरठ और हरिद्वार के क्षेत्र में तैमूर लंग पर ऐसे भयावह हमले किए थे कि वह भारत छोड़कर भागने को विवश हो गया, और फिर कभी इधर का रुख नहीं किया।
तत्समय विभिन्न समुदायों और जातियों के लगभग अस्सी हज़ार योद्धाओं ने तैमूर लंग पर स्थान-स्थान पर हमले किए और उसकी सेना के बहुत बड़े भाग को नष्ट कर दिया। और इस प्रकार मेरठ, हरिद्वार और आसपास के समस्त भू-भाग को तैमूर द्वारा लुटने से बचा लिया।
वीरांगना रामप्यारी गुर्जर-2:-
तैमूर लंग के विषय में कौन नहीं जानता, उसने लाखों निर्दोष हिंदुओं का नरसंहार किया, अनगिनत उत्कृष्ट मंदिर और मठों को नष्ट-भ्रष्ट किया तथा करोड़ों की संपत्ति लूटी और नष्ट की।
यह सब उसने अटोक के मार्ग से दिल्ली आने तक किया। 'परंतु अपने वापस लौटने के मार्ग में वह कुछ नहीं कर पाया', आखिर क्यों? आइए जानते हैं:--
वीरांगना रामप्यारी गुर्जर का जन्म सहारनपुर में एक चौहान गुर्जर परिवार में हुआ था। अपने बाल्यकाल से ही वे भारतीय योद्धाओं के पराक्रम शौर्य की कथाएँ सुनने में बहुत रुचि रखती थीं। मर्दाना कपड़े पहनने का उन्हें शौक था और मल्लयुद्ध तथा शस्त्र विद्या में उनकी गहरी रुचि थी।
भारतीय योद्धाओं के शौर्य, पराक्रम की गाथाएँ बहुत सीमा तक अंग्रेज शासकों द्वारा नष्ट कर दी गयीं। ऐसा इसलिए किया गया- ताकि भारतीयों में एक हीन भावना घर कर सके कि अंग्रेज भारतीयों से श्रेष्ठ हैं, और उन पर राज करके वे भारतीयों को सभ्य ही बना रहे हैं।
यहाँ यह बताना आवश्यक है कि- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उससे पूर्व भी वीर गुर्जरों ने अंग्रेजों से बहुत लोहा लिया और उनका राज करना मुश्किल कर दिया था। इसके प्रत्युत्तर में अंग्रेजों ने गुर्जरों को आपराधिक जाति घोषित कर दिया और उनकी जमीनें तथा राज्य तक हड़प लिए।
इतना ही नहीं, ऐसी समस्त वीर जातियों के इतिहास को भी छुपाने दबाने की धृष्टता, प्रयास किए गए जिन्होंने अंग्रेजों का विरोध किया था।
इन सबके उपरांत भी लोकगीत और लोक गाथाओं ने वीरांगना रामप्यारी गुर्जर और ऐसे अनेक वीरों की स्मृति को आज भी जीवित रखा है, जिन्हें तथाकथित इतिहासकारों ने स्थान न देते हुए विस्मृत कर दिया।
वीरांगना रामप्यारी गुर्जर-3:-
अधिकतर उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्य और ग्रंथ दिल्ली पर तैमूर लंग के आक्रमण और उसकी जीत का ही जिक्र करते हैं। परंतु उसके वापस लौटने और हरिद्वार, मेरठ तथा गढ़वाल के क्षेत्र में उसकी सेना पर भारतीयों के संगठित प्रतिकार और तैमूर लंग की परेशानी का जिक्र किंचित कम ही मिलता है।
पंद्रहवीं शताब्दी के पारसी इतिहासकार शरफद्दीन अली यज़दी की पुस्तक, जो कि तैमूर का जीवन वृत्तान्त है, उसमें यह पूरा प्रसंग विस्तार से मिलता है। यही घटनाक्रम मोहम्मद इब्न अरबशाह जो कि एक अरब यात्री और लेखक था, द्वारा लिखे गए तैमूर के जीवन वृत्तान्त में भी मिलता है।
कहा जाता है कि तैमूर लंग अपने इस आघात से कभी उबर नहीं पाया। हरिद्वार, मेरठ, गढ़वाल और उसके आसपास के क्षेत्र को लूटने का उसका स्वप्न धरा ही रह गया। इस युद्ध के सात वर्षों के पश्चात् उसकी मृत्यु हो गई।
तैमूर लंग जब भारत आया था तो उसके पास डेढ़ लाख सैनिकों की सेना थी। वापस लौटते समय वह मात्र कुछ हजार सैनिकों के साथ लौटा। उसके बाकी सभी सैनिक भारत में ही मारे गए। महापंचायत की सेना के भी लगभग चालीस हज़ार सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी, परंतु 'उन्होंने पूरे क्षेत्र को तैमूर की लूट-खसोट और अराजकता से बचा लिया।'
वीरांगना रामप्यारी गुर्जर तथा महापंचायत के उन सभी वीरों को हमारा नमन्।


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